फेलोशिप बंद करने पर एसएफआई ने किया विरोध प्रदर्शन

एसएफआई ने अखिल भारतीय कमेटी के आह्वान पर ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पिंक पैटल चौक पर धरना प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन केंद्र सरकार द्वारा मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप बंद करने के विरोध में किया गया। पिछले दिनों अल्पसंख्यक विभाग की मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा संसद में यह कहा गया कि मौलाना आज़ाद नेशनल फैलोशिप सरकार द्वारा दी जाने वाली अन्य फैलोशिप के साथ ओवरलैप कर रही है इसलिए सरकार ने इसे बंद करने का फैसला किया है। अपने वक्तव्य में उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में मुस्लिमों को ओबीसी का दर्जा प्राप्त है जहां यह फैलोशिप ओवरलैप कर जाती है।
इसके विरोध में देशभर में छात्रों द्वारा धरने प्रदर्शन किए गए। इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए सरकार ने दमनकारी नीति भी अपनाई। इसीलिए एस एफ आई ने उन छात्रों के समर्थन तथा केन्द्र सरकार के इस छात्र विरोधी फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया ।
गौरतलब है कि यह फैलोशिप देशभर के 6 अल्पसंख्यक समुदायों { मुस्लिम, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, सिख } के शोध कार्य कर रहे उन छात्रों को मिलती है जिनकी वार्षिक आय 6 लाख से कम है। इस फेलोशिप को 2005 के अंदर बनी सच्चर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर 2009 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को उच्च शिक्षा में मदद देना था।
विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई सचिवालय सदस्य शाहबाज खान ने कहा की स्मृति ईरानी द्वारा संसद में दिया गया बयान बुनियादी तौर पर निराधार है। सरकार एक एक समुदाय के चलते बाकी 5 समुदायों की फैलोशिप खत्म नहीं कर सकती। यह फैलोशिप शोध कर रहे उन छात्रों के लिए रीड की हड्डी का कार्य करती थी परंतु सरकार इसमें मौजूद समस्याओं को दूर करने के बजाए अपने हाथ पीछे करने का कार्य कर रही है जोकि शिक्षा के प्रति इस सरकार की नियत को दर्शाता है। एसएफआई अखिल भारतीय कमेटी सदस्या सरिता ने कहा कि 2014 के बाद से ही केंद्र की एनडीए सरकार लगातार शिक्षा को गरीब तबके से दूर कर उसे अमीर तबके तक ही सीमित रखने का प्रयास कर रही है। इस सरकार ने सुनियोजित तरीके से पहले प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप को खत्म किया तथा उसके बाद एससी एसटी स्कॉलरशिप को कम किया गया। अब मौलाना आजाद नेशनल फैलोशिप को खत्म करना इस सरकार की मंशा को दर्शाता है और नई शिक्षा नीति भी इसी का एक उदाहरण है।
सरिता ने साथ ही कहा कि शिक्षा पर ये हमले यहीं नहीं रुकेंगे बल्कि इस सरकार की मंशा शिक्षा को पूंजीपतियों के हाथों बेचने तथा छात्रों को उपभोक्ता बनाने की है। हमने देखा है कि जब छात्र विरोध करता है तो उसे किस तरह से प्रताड़ित किया जाता है । इस समस्या का एक ही समाधान है कि देश भर के छात्रों को लामबंद होकर आंदोलनरत होना पड़ेगा ताकि आगे से कोई भी सरकार छात्र विरोधी नीतियां बनाने से पहले सौ बार सोचें।
एसएफआई का मानना है कि शिक्षा पर देश की जीडीपी का 6% खर्चा किया जाना चाहिए तभी हम शिक्षा को समाज के प्रत्येक तबके तक समान रूप से पहुंचा पाएंगे। परंतु आज हम यह देख रहे हैं कि सरकार अपने दायित्व से पीछे हटने का प्रयास कर रही है। यह समाज के गरीब तबके के लिए खतरे का सबब है। शिक्षा कोई वस्तु नहीं है जिसे हिसाब किताब की तराजू में तोला जाए बल्कि सरकार का प्रयास होना चाहिए कि अधिक से अधिक छात्रों को उच्च शिक्षा तक पहुंचाएं तथा शोध में मदद करें।
एसएफआई हमेशा से ही सरकारों की छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ छात्रों की आवाज बनकर आंदोलन करती आई है और आज भी इस आंदोलन को देश भर में तब तक जारी रखेगी जब तक सरकार द्वारा जारी किया गया यह तुगलकी फरमान वापस न लिया जाए।