मानव भारती फर्जी डिग्री कांड में समय रहते सरकार ने अगर की होती कार्रवाई तो असली गुनाहगार होते सलाखों के पीछे : राणा

हमीरपुर 6 जनवरी
मानव भारती विश्वविद्याल फर्जी डिग्री मामले में चली जांच में परतें उघडऩे के बाद अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि फर्जी डिग्री कांड पर बीजेपी सरकार अगर ईमानदारी से व समय पर कार्रवाई करती तो यह मामला हिंदुस्तान का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का मामला साबित हो सकता था। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है। राणा ने कहा कि लगातार मीडिया के दबाव व विधानसभा में मामला उठाए जाने के बाद इस फर्जी डिग्री कांड की जांच शुरू हुई। जांच के शुरुआती दौर में 5 से 6 लाख फर्जी डिग्रियों के मामले सामने आने के आरोप लगे। लेकिन जनता, मीडिया व विपक्ष के दबाव के बावजूद भी इस जांच को प्रभावित करने के सरकार ने हर हथकंडे अपनाए और अब धीरे-धीरे फर्जी डिग्री मामलों को कम करके 50 हजार फर्जी डिग्रियां बेचने का खुलासा जांच के दौरान हुआ है। इस फर्जी डिग्री कांड की जांच स्टेट सीआईडी व पुलिस की सांझा एसटीआई कर रही है। जिसमें अब मामले को पीओ सेल के हवाले किया गया है, ताकि अपराधियों की गिरफ्तारी हो। लेकिन सवाल यह उठता है कि इस फर्जी डिग्री कांड की जांच को जानबूझ कर लंबित करते हुए अपराधियों से देश से बाहर भागने का मौका दिया गया। ताकि इस फर्जी डिग्री कांड के असली गुनाहगारों को बचाया जा सके व इस मामले को दबाया जा सके। पुलिस जांच में स्पष्ट हुआ है कि फर्जी डिग्री कांड का सरगना का परिवार ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो चुका है। जबकि अब सरकार जांच के नाम पर लकीर पीट कर साफ-पाक होना चाह रही है। जबकि वास्तविकता यह है कि इस मामले की जांच में सरकार की लेटलतीफी के कारण इस मामले के असली गुनाहगारों को बचाने व मामले को दबाने का प्रयास किया गया है। राणा ने कहा कि जब इस मामले पर समूचा विपक्ष, मीडिया व प्रदेश की जनता तत्काल कार्रवाई चाह रही थी, उस वक्त अगर सरकार एक्शन मोड़ में आ जाती तो इस मामले के असली गुनाहगार अब तक सलाखों के पीछे होते। राणा ने कहा कि कहना न होगा कि फर्जी डिग्री कांड में सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण असली गुनाहगारों को बचाने का असंभव प्रयास किया गया। जिसके चलते इस मामले के असली गुनाहगारों पर अब कार्रवाई की संभावनाएं लगातार कम होती जा रही हैं। इस तथ्य को सरकार भी जानती है व प्रदेश की जनता भी समझती है कि इस फर्जी डिग्री कांड के असली गुनाहगार कौन हैं और किस-किस ने इस मामले में अपने हाथ रंगे हैं। राणा ने कहा कि जांच के शुरुआती दौर में फर्जी डिग्री कांड का मामला 20 हजार करोड़ रुपए का बनता था। क्योंकि तब 5 से 6 लाख डिग्रियों के फर्जी होने के आरोप कथित तौर पर सामने आए थे। मामला सीबीआई की जांच का बनता था लेकिन सरकार इस बड़े भ्रष्टाचार के असली गुनाहगारों को बचाने के चक्कर में इस मामले को सीबीआई को देने से लगातार कतराती रही। बीजेपी के कार्यकाल में शुरु हुआ प्राइवेट यूनिवसर्टियों के धंधे में अब अन्य यूनिवसर्टियां भी आरोपों के घेरे में हैं। अगर समय रहते सरकार ने इस मामले को सीबीआई को दिया होता तो इस मामले के असली गुनाहगार इस वक्त सरेआम प्रदेश में नहीं दनदनाते।