मुख्यमंत्री ने अफसरों को बताए मैनेजमेंट के फॉर्मूले, जमीनी अनुभव से होता योजनाओं का जन्म

शिमला. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिप्पा में अफसरों को मैनेजमेंट की फॉर्मूले समझाए। मुख्यमंत्री के संबोधन में यह साफ दिखा कि वह योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर अपने अनुभवों के आधार पर करने पर विश्वास करते हैं। जनता के साथ मिलकर और उनके साथ खड़े होकर जो अनुभव होते हैं, उन्हीं अनुभवों के आधार पर ही मुख्यमंत्री अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन करने में विश्वास करते हैं। जयराम ठाकुर कहते हैं कोई जरुरी नहीं है कि कोई बड़ा काम ही किया जाए, बड़े काम करने ही हैं लेकिन इसके साथ छोटे- छोटे काम भी जनता के लिए बहुत सुविधा जनक होते हैं। हिप्पा में ट्रेनिंग लेने वाले अफसरों को मुख्यमंत्री बताते हैं कि आपको जनता के बीच कैसे काम करना चाहिए।

मुख्यमंत्री अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि जब वह विधायक थे, तब तात्कालीन मुख्यमंत्री से मिलने ओकओवर गए। जयराम इस अनुभव को साझा करते हुए बताते हैं कि जब ओकओवर गए तो एक विकलांग व्यक्ति, जिसकी एक टांग कटी हुई थी, मुख्यमंत्री से मिलने आया। वहां बैठने की व्यवस्था नहीं थी तो लंबे समय तक वह खड़ा रहा, लेकिन एक पैर से खड़ा रहना असहनीय हो गया तो वह वहीं जमीन पर बैठ गया। इसके बाद जब मुख्यमंत्री आए तो वह उठकर मिला। इसके साथ ही उन्होंने कई बार ओकओवर और मुख्यमंत्री कार्यालय में लोगों को घंटे इंतजार करते देखा। जहां न बैठने की व्यवस्था, न पानी की और न ही टायलेट की। आदमी कभी-कभी तीन से चार घंटे तक इंतजार करके थक जाते थे। कई बार तो चक्कर खाकर जमीन पर गिर गए और बेहोश भी हुए। जिसे उन्होंने कई बार अपनी आंखों से देखा। जब उन्हें मुख्यमंत्री पद के नए दायित्व का मौका मिला तो सबसे पहले उन्होंने ओकओवर में मिलने आने वालों के लिए बैठने की व्यवस्था की। वहां पर पानी और टायलेट की भी व्यवस्था की। इसी तरह सचिवालय में कहां कि यहां पर भी सौ से अधिक लोगों के लिए व्यवस्था करो। जगह नहीं थी, अफसरों से बोला तो बोले कहां करेंगे, जगह ही नहीं है। फिर देखा तो सचिवालय की एक जिम बनी थी। खोल कर देखा तो वह खंडहर जैसी पड़ी थी, समान में जंग लग गया था। वहां पर सही कराकर मिलने आने वालों के लिए बैठने की व्यवस्था की, पीने के पानी और टायलेट की व्यवस्था की। क्योंकि मुख्यमंत्री की व्यस्तता के कारण कई घंटे लोगों को इंतजार करना पड़ता है। इसी तरह का प्रबंध विधानसभा में भी किया। जो पहले के मुख्यमंत्रियों के समय जनता के लिए नहीं की जा सकीं। यह छोटा सा काम था लेकिन हजारों लोगों के लिए सुविधा प्रदान की गई।

जो कुछ नहीं बन पाता, वो नेता बनने आता है

मुख्यमंत्री ने फिर अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि वह अभी मैरिट में आए छात्रों के सम्मान समारोह में गए थे। वहां जिन बच्चों को मैं प्रशस्ति पत्र देता था, उनसे पूछता था कि आप क्या बनना चाहते हो। करीब तीन छात्र-छात्राओं में से अधिकांश ने कहा कि वे आइ्एएस, डॉक्टर व इंजीनियर बनना चाहते हैं। तीन सौ में से मात्र 4 छात्रों ने ही कहा कि वह टीचर बनना चाहते हैं। अधिकांश पेरेंट्स की इच्छा होती है कि उनके बच्चे अफसर बने, डॉक्टर बने या इंजीनियर बने। कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि बच्चे में जो प्रतिभा होती है या बच्चे की जिसमें रुचि होती है, वह उसमें ध्यान न देकर पेरेंट्स के दवाब में कुछ और बनने का प्रयास करता है। जिससे वह जो चाहता है वह नहीं बन पाता। फिर आखिर में उनके पेरेंट्स हमारे पास आते हैं कि इसे कोई पद दो जिससे यह काम करे। मुख्यमंत्री सीधे कहते हैं कि जब कुछ नहीं बन पाता है तो वह नेता बनने के लिए आता है। नेता बनने की प्रियोरिटी लास्ट की होती है।

अफसरों के पास तो ऑप्शन हैं, नेताओं के पास नहीं

अफसरों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की कहते हैं कि आप लोगों के पास तो ऑप्शन होता है कि रिटायर होने के बाद राजनीति में आ जाओ। किसी भी पार्टी से टिकट मांगो और नेता बन जाओ। केंद्र सरकार और राज्यों में ऐसे कई उदाहरण हैं जो आईएएस की नौकरी से रिटायर मेंट लेकर राजनीति में आते हैं और सरकार में मंत्री भी बनते हैं। लेकिन नेताओं के पास ऑप्शन नहीं होता है कि वह राजनीति के अलावा और कुछ कर सकें। राजनीति में भी उनकी भूमिका और दायित्व बदलते रहते हैं क्योंकि हर पांच साल में चुनावी परीक्षा देनी होती है।

प्रशासन जनता के द्वार रस्म अदायगी थी, हमने जनमंच शुरु किया

मुख्यमंत्री कहते हैं कि हमने सोचा कि क्यों प्रदेश के दूर-दराज क्षेत्र से लोग अपने काम को लेकर आएं और अफसरों-नेताओं के चक्कर काटें। वह हजारों रुपए खर्च करते आते हैं, कहीं अफसर नहीं मिलने तो बिना काम के ही लौट जाते हैं। इस कारण जनता की समस्याओं को उनके घर पर समाधान करने की योजना शुरु करने पर विचार किया। अफसरों ने बताया कि सर पहले भी प्रशासन जनता के द्वार, कार्यक्रम चलता था। मैंने कहा, उसे मैंने देखा है, वह रस्मअदायगी ही था। ऐसी व्यवस्था शुरु करो जिसमें सीधे जनता की समस्याओं का समाधान हो। इसके लिए जनमंच कार्यक्रम शुरु किया जो बहुत सफल रहा है। इसमें हजारों समस्याओं का समाधान मौके पर ही हो जाता है। जो मौके पर नही हो सकतीं, उसके लिए थ्री लेयर सिस्टम बनाया है। जो उच्च अधिकारियों से लेकर सरकार तक आतीं हैं और समय पर उनका समाधान होता है। इसके साथ ही लोगों को घर बैठे समस्याओं के समाधान के लिए 1100 मुख्यमंत्री हेल्पलाइन सुविधा शुरु की है, जिससे भी हजारों समस्याओं का समाधान हो रहा है।

परसेप्शन : नेता तो अच्छा है, लेकिन एक–दो काम गड़बड़ हैं

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अफसरों को समझाते हैं कि अपने काम को लेकर कभी गलत परसेप्शन न बनने दें। कुछ नेताओं और अफसरों के बारे में परसेप्शन बन जाता है कि वह ऐसा है। काम नहीं करता या काम करने में देरी करता है। मेरे बारे में लोगों का परसेप्शन है कि अच्छा आदमी है, शरीफ आदमी है, लेकिन कुछ लोग और भी बहुत बोलते हैं। हमारे एक मंत्री के बारे में यह परसेप्शन बन गया है कि वह काम तो करता है लेकिन बत्तमीजी भी करता है। ऐसा परसेप्शन बनना ठीक नहीं है। कई अफसरों के बारे में यह परसेप्शन बना है कि वह काम नहीं करता है या काम में देरी करता है। ऐसा ठीक नहीं है। अधिकारी को कोई पर्सनल एजेंडा नहीं होना चाहिए, जो काम होने वाला है, वह हो जाना चाहिए। जो चीज एक सप्ताह में हो सकती है उसे कई अफसर महीनों लगा देता है। यह चीज नहीं होनी चाहिए। यह व्यक्ति का स्वभाव हो जाता है, जो जनता के लिए ठीक नहीं होता। परसेप्शन अच्छा बने तो जीवन भर काम आता है। काम करने वाला परसेप्शन बने तो बेहतर होता है।

नेता के दवाब में काम न करें, कानून के हिसाब करें

मुख्यमंत्री ने अफसरों को संबोधित करते हुए बताया कि कभी भी नेताओं के दवाब में कोई भी काम न करें। नेता तो कहता भी है और काम करने का दवाब भी बनाता है। लेकिन जो काम व्यवहारिक हो और नियमों के अनुसार हो, उसे ही करना। नेता तो कहते हैं कि यह काम करना है, करके लाओ, कुछ नेता हैं जो अलग तरीके से काम करते हैं, ऐसे में आपके सामने कठिनाई आ जाती है। इस दवाब में आकर कभी निर्णय नहीं लेना। यह निर्णय आपके गले की फांस बन जाता है। हां नेता की कोई विश है और वह नियमों के तहत है तो फिर उसे समय पर करना चाहिए। उसमें कोई बाधा डालने की जरुरत नहीं हैं। कभी बार मैंने देखा है कि काम होने वाला है लेकिन अफसर को नहीं करना तो उसकी जलेबी बना देते हैं। उसमें कुछ नहीं करना है, बस फाइलों में एक लाइन लिखना होता है, ऐसा मैने कई बार देखा है। अफसर कहता है कि नहीं, नेता ने बोल दिया तो क्या, ऑर्डर तो मुझे करना है और उसे लटका देते हैं। कई बार ऐसे इशु आते हैं और कई बार आते हैं, जो बहुत पीड़ा देते हैं। बहुत बार देखा है कि जो काम एक सप्ताह में पूरा हो जाना चाहिए, उसको अफसर महीनों के लिए घुमा देते हैं। यह चीज ठीक नहीं है।

सहारा योजना का जन्म कैसे हुआ, पढ़िए

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कहते हैं कि जमीनी अनुभव से ही योजनाओं का जन्म होता है। वह कहते हैं कि मैं अपने गांव में गया, जहां कार्यक्रम था। जब कार्यक्रम खत्म हो गया तो एक साथी ने कहा कि मेरे साथ चलो घर के अंदर किसी ने मिलना है। मैंने कहा कि दो घंटे से कार्यक्रम चल रहा है, यहां मिल लेते लेकिन वह जिद करके घर ले गया। मैं उसके घर गया तो एक युवा लड़का बिस्तर में लेटा था। बताया कि उसका एक्सीडेंट हो गया था जिससे समस्या था। वह चल नहीं सकता था। उसकी मदद के लिए उसके परिवार के सदस्य को उसके साथ रहना पड़ता है। मेरा भाव आया कि उस आदमी को तो विकलांग पेंशन का प्रावधान तो हैं लेकिन जो उसके साथ रह रहा है, उसका काम कैसे चलेगा। जब मैं मुख्यमंत्री बना तो मैंने अफसरों से कहा कि ऐसे लोगों के लिए जो बीमार व्यक्तियों की मदद कर रहे हैं। इसके लिए सहारा नाम से योजना तैयार की जो बीमार व्यक्ति के अटेंडेंट को दी जाती है। बजट में प्रावधान किया और सहारा योजना के तहत अटेंडेंट को तीन हजार रुपए प्रतिमाह दिए जा रहे हैं। ऐसे लोग जो जिंदा हैं लेकिन न तो चल सकते हैं और न ही अपनी दिनचर्या को कर सकते हैं। ऐसे लोगों को परिवार का एक सदस्य हमेशा सहायता करता है। आज इस योजना के तहत करीब 20 हजार लोगों को फायद हो रहा है। इस तरह जनता के बीच से जो अनुभव होता है, उससे ही योजना बने तो सही लोगों को फायदा होता है।

ऐसा काम करें कि लोग याद रखें

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अफसरों को संबोधित करते हुए कहा कि आपको लक्ष्य पर फोकस होकर काम करना चाहिए। अभी आप सभी को सरकार में नई पोस्टिंग मिलेगी। आगे आप प्रमोशन पाकर जिले को संभालेंगे और आगे आकर सचिवालय में काम करेंगे। सरकारी योजनाओं को लागू तो करना ही है लेकिन जो जहां पर काम कर रहे हैं, उन्हें कुछ नया सोचकर भी काम करना चाहिए। अपने विभाग या क्षेत्र में नया सोचकर काम करेंगे तो कोई नया काम होगा। आज बहुत से अफसर हैं जिन्हें लोग किसी न किसी काम के लिए याद करते हैं कि उन्होंने हमारे जिले में यह काम किया। आप सभी लोगों को ऐसा काम करना चाहिए कि जिसे लोग याद रखें। अधिकारियों को नवाचार विचारों के साथ आगे आना चाहिए और लीक से हट कर सोचना चाहिए ताकि समाज के प्रत्येक वर्ग के सामाजिक-आर्थिक उत्थान और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए नवीन कार्यक्रम और परिणामोन्मुखी नीतियां बनाई जा सकें।

हिपा में अफसरों ने लिया प्रशिक्षण

हिपा के निदेशक विवेक भाटिया ने मुख्यमंत्री का स्वागत करते हुए कहा कि इस वर्ष 19 नवनियुक्त एचएएस और अन्य सिविल सेवा अधिकारियों ने 8 सप्ताह के फाउंडेशन कोर्स में भाग लिया, जो एक जुलाई से शुरू हुआ और इस माह की 28 तारीख को समाप्त होगा। इन अधिकारियों में नौ हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा अधिकारी, एक हिमाचल प्रदेश पुलिस सेवा अधिकारी, दो तहसीलदार, तीन खंड विकास अधिकारी, दो जिला श्रम एवं रोजगार अधिकारी, एक जिला नियंत्रक खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले और एक पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान के प्रधानाचार्य शामिल हैं। हिपा की अतिरिक्त निदेशक ज्योति राणा ने कार्यक्रम का संचालन किया और धन्यवाद प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया। एचएएस प्रशिक्षुओं डॉ. विवेक गुलेरिया और शिखा पटियाल ने हिपा में आयोजित दो माह के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के संबंध में अपने अनुभव साझा किए। दोनों प्रशिक्षुओं ने हिपा के प्रबंधन द्वारा उठाए गए अभिनव कदमों की सराहना की।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश लोक प्रशासन संस्थान के कल्पतरू भवन का लोकार्पण किया। इस भवन का निर्माण 4.34 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है। इस अवसर पर उन्होंने हिपा के ई-ऑफिस और वॉल-ई का भी शुभारम्भ किया।