संघर्ष से सफलता की रियल स्टोरी

छात्र जीवन से राजनीति में प्रवेश कर एनएसयूआई, युवा कांग्रेस के बाद कांग्रेस की कमान संभालने वाले
सुखविंदर सिंह सुक्खू बने प्रदेश के मुख्यमंत्री
शिमला. राजनीति में संघर्ष के प्रतीक सुखविंदर सिंह सुक्खू प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए । सुक्खू का मुख्यमंत्री पद पर
विराजमान होने की कहानी आम आदमी को प्रेरित करने वाली है। सुक्खू ने यह मुकाम किसी परिवारिक विरासत से
हासिल नहीं किया बल्कि अपने 40 वर्षों के राजनैतिक संघर्ष से हासिल किया है। सुक्खू को पारिवारिक पृष्ठभूमि एक
सामान्य परिवार की है। उनके पिता परिवहन निगम में कर्मचारी रहे हैं। हर पिता की तरह सुक्खू के पिता ने भी चाहा कि
बेटा अच्छी पढ़ाई कर लेगा तो कहीं सरकारी नौकरी लग जाएगा, जिससे सुक्खू शिमला में पढ़ाई करते हुए राजनीति में
आ गए। भविष्य संवारने के लिए यह रास्ता जोखिम भरा तो था ही। ऐसा देखा जाता है कि राजनीति में वही सफलता
हासिल कर सकता है जिसके पास पैसा हो या फिर जिसने अपने राजनैतिक विरासत को संभालते हुए राजनीति में कदम
रखता हो। सुक्खू के पास न तो पैसा था और न ही कोई राजनैतिक विरासत थी। बस उनके पास सफलता हासिल करने के
लिए संघर्ष करने का रास्ता था। संघर्ष के रास्ते पर निकले और आज सफलता हासिल कर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर
विराजमान हुए। सुक्खू ने सियासत में संघर्ष के रास्ते सफलता हासिल कर सभी मिथकों को तोड़ दिया है। जिससे पार्टी के
आम कार्यकर्ताओं को संदेश दिया है कि वह लगातार अपनी विचारधारा पर चलकर संगठन के लिए काम करते रहेंगे तो
जरुर एक दिन मुकाम हासिल करेंगे। ऐसा नहीं है कि संगठन का हर कार्यकर्ता मुख्यमंत्री ही बन जाए लेकिन यह तय है
कि वह अपने क्षमता और योग्यता के आधार पर किसी अच्छे पद पर आसीन होगा। सुक्खू ने अपने राजनैतिक जीवन की
शुरुआत एनएसयूआई के सदस्य के रुप में की। इसके बाद वह एनएसयूआई के अध्यक्ष, फिर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर
रहकर कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इस तरह सुक्खू ने करीब 40 वर्ष तक संगठन में काम किया और पार्टी को हर स्तर पर
मजबूत किया। यही कारण है कि सुक्खू के समर्थक हर विधानसभा क्षेत्र में मौजूद हैं और कांग्रेस हाईकमान ने भी सुक्खू के
संगठन के 40 वर्षों के काम को आधार बनाकर मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी है।

कॉलेज में सीआर से की राजनीति की शुरुआत
प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का जन्म हमीरपुर जिले के नादौन में हुआ था। सुक्खू ने एमए, एलएलबी की
शिक्षा ग्रहण की। शिमला के संजौली कॉलेज से ही उनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत हुई जब वो कॉलेज में सीआर बने।
सुक्खू वह वर्ष 1981-82 तथा 1982-83 में राजकीय स्नातक महाविद्यालय संजौली शिमला के कक्षा प्रतिनिधि रहे। वर्ष
1983-1984 में वह राजकीय स्नातक महाविद्यालय संजौली, शिमला के महासचिव निर्वाचित हुए तथा वर्ष 1984-85 में
राजकीय डिग्री महाविद्यालय संजौली के अध्यक्ष निर्वाचित किए गए।
वर्ष 1985-86 के दौरान वह हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागीय प्रतिनिधि रहे तथा वर्ष 1989-
95 तक राज्य युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1995-1998 तक वह प्रदेश युवा कांग्रेस के महासचिव, वर्ष 1998-2008
तक प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1992-97 और 1997-2002 तक वह दो बार नगर निगम शिमला के पार्षद

चुने गए। वर्ष 2008 से 2012 तक वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव और 8 जनवरी, 2013 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के
अध्यक्ष बने।वर्ष 2003 और वर्ष 2007 में वह प्रदेश विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए। वर्ष 2007-12 तक कांग्रेस
विधायक दल के मुख्य सचेतक रहे।सुखविंदर सिंह सुक्खू दिसंबर, 2017 में तीसरी बार विधायक के रूप में चुने गए और
सार्वजनिक उपक्रम, विशेषाधिकार और व्यापार सलाहकार समितियों के सदस्य के रूप में नामित हुए। दिसंबर, 2022 में
वह चौथी बार फिर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए हैं और आज मुख्यमंत्री पद का पदभार ग्रहण किया।

कांग्रेस ने आम कार्यकर्ता को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा को दिया जवाब
सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री पद मिलने के पीछे सबसे बड़ा कारण संगठन का आम कार्यकर्ता होना शामिल है।
कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि कांग्रेस ने पार्टी के एक आम कार्यकर्ता को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया है। भाजपा
हमेशा कांग्रेस पार्टी पर परिवारवाद का आरोप लगाती रही है। भाजपा यह दावा करती रही है कि भाजपा ही एक ऐसी
पार्टी से जिसमें आम कार्यकर्ता प्रधानमंत्री बन सकता है और राष्ट्रीय अध्यक्ष भी एक आम कार्यकर्ता बन सकता है। भाजपा
को राजनैतिक जवाब देने के लिए कांग्रेस ने हिमाचल के मुख्यमंत्री पद की कमान सुखविंदर सिंह सुक्खू को सौंपी है।
जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी संदेश जाए कि सरकार में किसी पद पर आसीन होने के लिए संगठन में लंबा काम
करना जरुरी है। वहीं भाजपा को भी जवाब मिल जाए कि कांग्रेस में परिवारवाद नहीं संगठन के कार्यकर्ताओं के लिए भी
अहम स्थान है।