शिमला में जीत के लिए नए चेहरे को उतारेगी कांग्रेस, हरीश जनारथा, यशवंत छाजटा और नरेश चौहान के बीच होगा टिकट का मुकाबला

 

 शिमला. हिमाचल में सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस एक-एक विधानसभा क्षेत्र को लेकर मंथन कर रही है। कांग्रेस सौ फीसदी जिताऊ चेहरे को ही मैदान में उतारने की रणनीति बना रही है। कांग्रेस उन विधानसभा सीटों पर पूरी तरह नए चेहरे उतारने की रणनीति बना रही है, जिन सीटों पर कांग्रेस पहले दो या तीन चुनाव हार चुकी है। इसी रणनीति के तहत शिमला शहरी सीट के लिए भी मंथन चल रहा है। शिमला सीट पर कांग्रेस के दावेदारों की लंबी सूची है। जिसमें प्रमुख रुप से हरीश जनारथा, आदर्श सूद, यशवंत छाजटा और नरेश चौहान प्रमुख हैं। लेकिन नए चेहरों के रुप में यशवंत छाजटा और नरेश चौहान ही मैदान में नजर आ रहे हैं। आदर्श सूद बहुत पहले कांग्रेस के विधायक रहे चुके हैं तो हरीश जनार्था दो बार चुनाव हार चुके हैं। एक बार कांग्रेस के टिकट से और एक बार कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में हार का सामना करना पड़ा। इस बार भी जनारथा टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। शिमला से कांग्रेस नए चेहरों को प्राथमिकता देती है तो फिर टिकट का मुकाबला छाजटा और नरेश चौहान के बीच होगा।

 

शिमला शहरी विधानसभा सीट पिछले 15 साल से भाजपा के खाते में जा रही है। इस दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी बनी, लेकिन शहरी सीट पर कांग्रेस कब्जा नहीं कर सकी। इसका सबसे बड़ा कारण शिमला से सही उम्मीदवार का चयन न होना माना जा रहा है। इसलिए कांग्रेस के नेता शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र को अपने कब्जे में करने के लिए गंभीर मंथन कर रहे हैं। आखिर क्या कारण रहे कि शिमला सीट पर कांग्रेस जीत दर्ज क्यों नहीं कर पा रही है। शिमला सीट से पिछले चुनावों में 2017 में हरभजन सिंह और 2012 में हरीश जनारथा कांग्रेस के उम्मीदवार। भज्जी जहां कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता आनंद शर्मा के करीबी माने जाते हैं तो हरीश जनारथा स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के करीबी रहे हैं। वीरभद्र सिंह ने अपनी पसंद के उम्मीदवार हरीश जनारथा को टिकट दिलवाया, लेकिन वीरभद्र सिंह पूरी ताकत लगाने के बाद भी जनारथा को नहीं जिता पाए। इसी तरह आनंद शर्मा ने भी भज्जी को दो बार टिकट दिलावाई लेकिन भज्जी भी जीत दर्ज नहीं कर सके। गत चुनावों में कांग्रेस ने भज्जी को टिकट दिया तो हरीश जनारथा कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव मैदान में उतर गए। जिससे कांग्रेस प्रत्याशी भज्जी की जमानत जब्त हो गई। जनारथा खुद तो हारे ही, कांग्रेस प्रत्याशी को भी हरा दिया। इस प्रकार कांग्रेस की लड़ाई के कारण भाजपा प्रत्याशी को फायदा हुआ और वह जीत गए।

अब कांग्रेस शिमला सीट को लेकर पूरी तरह अलर्ट है। वह किसी सिफारिश पर टिकट देने की बजाय जनता के बीच बेहतर छवि वाले नेता को ही मैदान में उतारने की रणनीति बना रही है। नए चेहरों के रुप में यशवंत छाजटा और नरेश चौहान के बीच टिकट की दावेदारी मुकाबला होगा। नरेश चौहान जहां 35 साल से अधिक समय से कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई, युवा कांग्रेस व कांग्रेस में लंबे समय से महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर रहे हैं। वहीं यशवंत छाजटा अभी कांग्रेस में नए हैं। वहीं सीधे कांग्रेस में ही आए और शिमला ग्रामीण के अध्यक्ष भी रहे हैं। शहरी क्षेत्र में अभी छाजटा पकड़ नहीं बना पाए हैं। इसके साथ ही हरीश जनारथा भी दावेदारी तो कर रहे हैं लेकिन उनकी दावेदारी पर दो बार शिमला शहर से हारने का ग्रहण लग रहा है। दो बार हारने के बाद जनारथा को कांग्रेस हाईकमान जिताऊ उम्मीदवार माने, यह बात असंभव से लगती है। हरीश जनारथा पर यह भी सवाल उठता है कि वह कांग्रेस के वफादार सिपाही नहीं है। कांग्रेस से टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ना भी जनारथा की दावेदारी को कमजोर करता है। इन सब सियासी समीकरणों के बाद साफ छवि वाले संगठन से सीनियर नेता के रुप में नरेश चौहान की दावेदारी मजबूत दिख रही है।

नरेश चौहान के पक्ष में कई पहलू बहुत सकारात्मक हैं, जो नरेश चौहान की दावेदारी को मजबूत कर रहे हैं। सबसे पहली बात कि नरेश चौहान नए चेहरे के साथ युवा और बेदाग छवि के नेता है। कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई, युवा कांग्रेस से लेकर कांग्रेस संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। नरेश चौहान करीब 35 साल से अधिक समय से संगठन से जुड़े हुए हैं। वर्तमान में नरेश चौहान प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं। इससे पहले 2002 से प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महत्वपूर्ण पदों पर रहकर कार्य करते रहे हैं। नरेश चौहान की शहरी कांग्रेस में स्वीकार्यता पूरी है। नरेश चौहान के नाम पर हाईकमान मुहर लगाती है तो पूरी एकजुटता के साथ पार्टी नेता और कार्यकर्ता कांग्रेस के जिताने के लिए दम लगाएंगे। जिससे शिमला की सीट कांग्रेस के खाते में आएगी। इससे पहले कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण यही माना जाता रहा है कि कांग्रेस की प्रत्याशियों की संगठन में ही पूरी तरह स्वीकार्यता नहीं रही और कांग्रेस की गुटबाजी के कारण ही हार का सामना करना पड़ा। इस कारण अब कांग्रेस नरेश चौहान को जिताऊ उम्मीदवार के रुप में देख रही है, जिससे कांग्रेस शिमला शहरी सीट पर जीत दर्ज कर सके।