चीफ सेकेट्री राम सुभग सिंह की जांच के लिए पीएमओ से आया पत्र, भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोप, वन विभाग के पूर्व मुखिया भी आरोपों से घिरे, जांच ठंडे बस्ते में होने से उठ रहे सवाल

 

शिमला. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सरकार के मुख्य सचिव राम सुभग सिंह की जांच के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र जारी हुआ है। जिसमें वन विभाग के एसीएस रहते हुए भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोप राम सुभग सिंह पर लगे हैं। भ्रष्टाचार का यह मामला वन विभाग के द्वारा कांगड़ा जिले के नगरोटा सूरियां में बनने वाले इंटरप्रेटेशन सेंटर के भवन निर्माण का है। जिसमें आरोप है कि वन विभाग ने करोड़ों रुपए खर्च किए और भवन का निर्माण घटिया पाया गया। वन विभाग की ओर से जांच के लिए गठित कमेटी ने भी भवन निर्माण को घटिया करार दिया है। जिससे करोड़ों रुपए खर्च कर घटिया भवन निर्माण होने पर वन विभाग के पूर्व मुखिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। आखिर ऐसा क्या था कि करोड़ों रुपए का बजट खर्च करने के बाद भी भवन का निर्माण घटिया हुआ। आखिर वन विभाग के तात्कालीन अधिकारी कैसे बिना जांच के ठेकेदार को पैसे रिलीज करते रहे। इस पूरे मामले की शिकायत शिमला के ब्रजलाल नामक व्यक्ति ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को की थी। जिससे प्रधानमंत्री कार्यालय से मुख्यमंत्री कार्यालय को पत्र आया कि पूरे मामले की जांच की जाए। पीएमओ से आए पत्र को आए लंबा समय हो गया लेकिन सरकार ने क्या जांच की इसकी कोई जानकारी नहीं मिली है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से जब मीडिया ने सवाल किया तो मुख्यमंत्री ने कहा कि पीएमओ का पत्र उनकी नॉलेज में है। पूरे मामले को समझकर आगे कार्रवाई की जाएगी।
वन विभाग के इस इंटरप्रेटेशन सेंटर के घटिया निर्माण को लेकर हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव राम सुभग सिंह पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के संगीन आरोप लगे हैं। राम सुभग सिंह पर आरोप है कि वन विभाग के एसीएस रहते हुए इंटरप्रटेशन सेंटर के भवन निर्माण में भारी गड़बड़ी हुई, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

शिकायतकर्ता ने पत्र में सीएम को संबोधित करते हुए लिखा है कि कांगड़ा जिले के नगरोटा सूरियां में वन विभाग के इंटरप्रटेशन सेंटर भवन को लेकर आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि जिसके लिए 2 करोड़ 66 लाख 82 हजार रुपये की लागत दर्शायी गई है. इसकी स्वीकृति 28 जुलाई 2015 को दी गई थी. तत्तकालीन सरकार द्वारा 2015-16 के लिए इस भवन निर्माण को 47 लाख 27 हजार 927 रुपये की सेंक्शन दी गई थी, लेकिन इस कार्य को लेकर 1 करोड़ 61 लाख का टैंडर बिना सरकार की स्वीकृति के कर दिया गया. इतना ही ,नहीं इस भवन निर्माण पर 2 करोड़ 67लाख रुपये के लगभग खर्चा किया गया है, लेकिन इसकी जो जांच हुई है, उस जांच रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे हुए हैं.
वन्य प्राणी के प्रधान मुख्य अरणयपाल द्वारा 10 मई 2019 को जांच कमेटी का गठन किया गया था. मौके का निरीक्षण करने के बाद जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, इस भवन पर जो खर्च दिखाया गया, उसमें 69 लाख 57 हजार 988 रुपये का लेखा-जोखा नहीं पाया गया, यानी सरकारी खजाने से ये पैसा बिना कार्य के निकाला गया, जोकि इस जांच में बतौर घोटाला प्रकाशित किया गया है।
इस जांच कमेटी के चैयरमेन आईएफएस प्रदीप ठाकुर थे. टेक्निकल मेंबर बिमल कुमार, एडमिन मेंबर आईएफएस निशांत मंढोत्रा, कॉ-आप्टिड मेंबर एसएस नेगी, जेई और कॉ-आप्टिड मेंबर 2 मिलाप भंडारी सदस्य थे.शिकायतकर्ता के अनुसार, जांच कमेटी ने इस भवन को असुरक्षित घोषित किया है, क्योंकि इसके निर्माण में घटिया क्वालिटी की सामग्री का इस्तेमाल किया गया है. घटिया क्वालिटी सरिया,रेता बजरी इत्यादि के इस्तेमाल की वजह से ये भवन पूर्ण रूप से असुरक्षित है, भविष्य में कोई बड़ा हादसा हो सकता है.कमेटी की जांच रिपोर्ट में ये भी सनसनीखेज खुलासा किया गया है कि इस भवन के निर्माण से पहले भूमि और मिट्टी का परीक्षण भी नहीं करवाया गया है. जांच रिपोर्ट में ये भी खुलाया हुआ है कि करोड़ों रू. की लागत से बनाए गए इस भवन निर्माण का कार्य वन विभाग के फोरेस्ट गार्ड, बी.ओ., आर.ओ द्वारा करवाया गया है जोकि 10वीं और 12वीं क्लास तक पढ़े हैं और इस प्रकार के सिविल कार्यों के लिए ये अधिकारी योग्य नहीं है. इनके साथ एक एचडीएम को भी नियुक्त किया गया था, वे भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराए गए हैं. इसके अलावा इलैक्ट्रिकल इंजीनियर के बिना ही भवन में बिजली की वायरिंग का कार्य किया गया जबकि इसके लिए इलैक्ट्रिकल इंजीनियर का होना अति आवश्यक था.रिपोर्ट के अनुसार करोड़ों रुपये से असुरक्षित भवन बनाया गया और सरकारी पैसा पानी में बहा दिया गया. जांच कमेटी ने इसके लिए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई अमल में लाने की सिफारिश की है. शिकायतकर्ता ने जांच रिपोर्ट के 9 बिंदू बताए हैं. इस शिकायत पत्र में और कई मामलों के बारे में भी लिखा गया है. शिकायतकर्ता ने ये भी लिखा है कि इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए सरकार द्वारा 2015-16 में 47 लाख 27 हजार 967 की स्वीकृति दी थी तो फिर डीएफओ हमीरपुर, वाइल्ड लाइफ, सीए.ए. वाइल्ड लाइफ कांगड़ा ने 2 करोड़ 66 लाख 82 हजार रुपये कहां से खर्च किए और किसकी स्वीकृति से सरकारी खजाने से पैसे निकाले गए, इस पूरे षड़यंत्र के लिए डीएफओ और सी.एफ. के साथ साथ प्रधान मुख्य अरण्यपाल भी जिम्मेदार है. शिकायकर्ता ने इस भवन को गिराने और दोषी अधिकारियों से जनता के 2 करोड़ 67 लाख रुपये की रिकवरी की जाए और पूरे मामले की विजिलेंस जांच करवाई जाए. इस शिकायत पत्र की प्रतिलिपि सतर्कता विभाग के ततकालीन प्रधान सचिव संजय कुंडू को भी दी गई थी. विभाग ने 19 अगस्त 2019 को वन विभाग को चिठ्ठी लिख कर अपने स्तर पर जांच के आदेश दिए थे।
मुख्य सचिव ने नहीं की कोई कार्रवाई

शिकायतकर्ता ब्रिज लाल का आरोप है कि 1987 बैच के IAS अधिकारी राम सुभग सिंह को पूरे मामले की जानकाऱी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की, जांच करने के बावजूद इस भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया, जब विजिलेंस ने जांच के लिए चिठ्ठी लिखी तो हमीरपुर के डीएफओ का तबादला शिमला कर दिया. शिकायतकर्ता का आरोप है कि जांच रिपोर्ट और अन्य तथ्यों को खंगालने के बाद जाहिर होता है कि राम सुभग सिंह ने कार्रवाई के बजाए संरक्षण दिया जोकि बड़े सवाल खड़े कर रहा है. शिकायतकर्ता के मुताबिक ये भवन 2019 में बनकर तैयार हो गया था और मुख्यमंत्री से इसका उद्घाटन करवाया जाना था, लेकिन आज तक इसका उद्घाटन नहीं हो पाया है. ये भी आपको बताते चलें कि शिकायकर्ता ब्रिज लाल शिवसेना की हिमाचल इकाई के प्रवक्ता भी हैं.