भारत तिब्बत सीमा से सटे गांव में फटा बादल, बागवानों को भारी नुकसान

मानसून सीजन में हिमाचल में बादल फटने की यह तीसरी घटना, कुल्लू में चार लोगों की जा चुकी है जान
पर्यावरणीय बदलावों की वजह से प्राकृतिक आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील हिमाचल प्रदेश में मानसून कहर बरपा रही है। मानसून को प्रदेश में आए हुए तीन सप्ताह का समय भी नहीं गुजरा है कि यहां पर भारी बारिश, बाढ़ और बादल फटने की कई घटनाएं देखने को मिल चुकी हैं। सोमवार शाम को भारत तिब्बत सीमा से सटे शलखर गांव में बादल फटने की घटना सामने आई। सीमा के साथ सटा यह इलाका ट्रांस हिमालय क्षेत्र में आता है और इस यहां बेहद कम बारिश देखने को मिलती है। बावजूद इसके इस क्षेत्र में बादल फटने की घटना का होना इस क्षेत्र के लोगों के लिए चिंता का विषय है। सोमवार हुई इस घटना में शलखर और चांगो गांव के बागवानों को भारी नुकसान पहुंचा है। बादल फटने की वजह से यातायात व्यवस्था पूरी तरह बाधित हो गया है और क्षेत्र में जल शक्ति विभाग की कई योजनाओं के साथ स्थानीय लोगों की ओर से सिंचाई के लिए बनाई गई कई कुहलें पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई हैं। जिससे गांववालों को सिंचाई और पीने के पानी के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
शलखर पंचायत की प्रधान सुमन लता ने बताया कि बादल फटने की वजह से ढूनाला, देनानाला, बस स्टैंड नाला, शारंग नाला, मूर्तिक्यू नाला, गीप और गौतांग नाले में बाढ़ आ गई थी जिसकी वजह से इस नाले के साथ सटे क्षेत्रों को भारी नुकसान पहुंचा है। उन्होंने बताया कि बाढ़ की वजह से पानी लोगों के घरों, सेब के बागों और नकदी फसलों की भूमि में घुस गया। जिससे सेब के 600 पौधों और खड़ी मटर और आलू की फसलों को नुकसान पहुंचा है।
शलखर गांव के युवा किसान गौरव कुमार ने बताया कि बादल फटने की घटना के बाद किन्नौर घाटी स्पिति घाटी से पूरी तरह से अलग हो गई है। शलखर में एक पूल पूरी तरह टूट गया है और सड़कों को भी बहुत नुकसान पहुंचा है। उन्होंने बताया कि सड़क और पुलों को ठीक करने के लिए मौके पर स्थानीय प्रशासन, लोक निर्माण विभाग, आईटीबीपी और सेना के लोगों की ओर से राहत कार्य किया जा रहा है।
गौर रहे कि 29 जून को हिमाचल में मानसून की दस्तक के बाद प्राकृतिक आपदाओं में 91 लोगों की जानें जा चुकी हैं और 121 लोग घायल हुए हैं। इसके अलावा इस सीजन में अभी तक प्रदेश की 368 करोड़ रूपये की संपति को नुकसान पहुंच चुका है। शलखर में बादल फटने की घटना से पहले 6 जुलाई को कुल्लू के छोज इलाके में बादल फटने की घटना हो चुकी है जिसमें 4 लोगों का अभी तक पता नहीं लग पाया है। वहीं इसके बाद 8 जुलाई को बिलासपुर जिला के घुमारवीं में भी बादल फटने की घटना में लोगों के घरों और गोशालाओं को नुकसान पहुंचा था।
मानसून हिमाचल को हर साल बड़े जख्म दे रही है और पिछले साल निगुलसरी में चट्टानें गिरने की घटना से हिमाचल अभी उबर नहीं पाया है। किन्नौर के निगुलसरी में दो दर्जन से अधिक लोगों की जानें गई थी और अभी तक इस स्थान को असुरक्षित घोषित किया गया है। हाल ही में किन्नौर जिले के उपायुक्त आबिद हुसैन सादिक ने निगुलसरी से आने जाने वाहनों को शाम 8 बजे से सुबह के 6 बजे तक आम वाहनों की आवाजाही पर पाबंदी लगाई है ताकि किसी प्रकार की अनहोनी को रोका जा सके।
भले ही सरकार की ओर से प्राकृतिक आपदाओं के दृष्टिगत एहतियातन कदम उठाते हुए वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाने का फैसला लिया गया हो, लेकिन पर्यावरण में आ रहे बदलावों की वजह से प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ रही आवृति और इसमें हो रहे नुकसान के उपर गहन शोध की जरूरत है। ताकि प्राकृतिक आपदाओं के पीछे मूल कारणों की पहचान हो सके और उन्हें देखते हुए भविष्य की रणनीति तैयार की जा सके।